हम जातियों का नंग नाच देख रहे हैं |
हम राजनीति का उवाच देख रहे हैं ||
जाति जाति की दुकान है सजी हुयी |
जातिवाद ज़हर से ज़मी तपी हुयी ||
आज देश में न कोई भारतीय है |
जो भी है , जहां भी है , जातीय है ||
जातियों के चूल्हों में यहाँ हर जगह ,
हम राजनीति रोटियाँ ही सेंक रहे हैं |
राज कुमार सचान 'होरी'